बी. क्या वाद इस न्यायालय के आर्थिक क्षेत्राधिकार में नहीं हैं?
2.
विचारण न्यायालय में निगरानीकर्तागण द्वारा आर्थिक क्षेत्राधिकार का प्रश्न उठाया था।
3.
क्या इस न्यायालय को प्रस्तुत वाद की सुनवायी का आर्थिक क्षेत्राधिकार नहीं है?
4.
विचारण न्यायालय ने अपने प्रश्नगत आदेश द्वारा वाद बिन्दु " क्या इस न्यायालय को प्रस्तुत वाद की सुनवाई का आर्थिक क्षेत्राधिकार प्राप्त है?
5.
निस्तारण वाद-बिन्दु सं 0-4 यह वाद बिन्दु आर्थिक क्षेत्राधिकार से सम्बन्धित है जिसका निस्तारण दि0 12. 8.2010 के आदेश द्वारा किया जा चुका है जो निर्णय का अंश रहेगा।
6.
प्रार्थी का प्रार्थनापत्र निरस्त किए जाने से प्रार्थी न्याय से वंचित हो गया तथा अपूर्णनीय क्षति कारित हुई है और विद्वान सिविल जज (जू0डि0) चम्पावत को आर्थिक क्षेत्राधिकार वाद के श्रवण का नहीं है।
7.
" का निस्तारण करते हुए यह निष्कर्ष दिया गया कि इस न्यायालय को प्रस्तुत वाद को सुनने का आर्थिक क्षेत्राधिकार प्राप्त है और वाद न्यायालय की आर्थिक क्षेत्राधिकारिता के अंदर है, से क्षुब्ध होकर यह दीवानी निगरानी निम्न आधारों पर. 1. प्रस्तुत की गई है।
8.
प्रतिवादी द्वारा प्रतिवादपत्र में क्षेत्राधिकार का प्रश्न मूल्यांकन के संबंध में उठाया गया था और चूंकि मूल्यांकन का वाद बिन्दु प्रतिवादी के विरूद्व नकारात्मक रूप से निस्तारित हो चुका है और न्यायालय को आर्थिक क्षेत्राधिकार है अत यह वाद बिन्दु प्रतिवादी के विरूद्व नकारात्मक रूप से निर्णीत किया जाता है।
9.
जहां तक निगरानीकर्तागण / वादी के विद्वान अधिवक्ता का यह कथन है कि न्यायालय सिविल जज (जू0डि0) चम्पावत को प्रस्तुत वाद के आर्थिक श्रवण का क्षेत्राधिकार नहीं है और इसी आधार पर न्यायालय सिविल जज (जू0डि0) के न्यायालय में वाद स्थानान्तरित करने हेतु प्रार्थनापत्र प्रस्तुत किया, तथ्यों एवं विधि के पूर्णतः विरूद्ध है, क्योंकि न्यायालय सिविल जज (जू0डि0) को वाद श्रवण के संबंध में मुव0-1,00,000/-तक के वादों के श्रवण का आर्थिक क्षेत्राधिकार प्राप्त है।